भौगोलिक स्थिति- सिरोही सीकर जिले की नीम-का-थाना तहसील में स्थित एक गांव है, जो जिला मुख्यालय सीकर से लगभग 64 किलोमीटर पूर्व की और तथा जयपुर से लगभग 102 किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित है। यह उत्तर में खेतड़ी तहसील से, दक्षिण में श्रीमाधोपुर तहसील से तथा पश्चिम में उदयपुरवाटी एवं खण्डेला तहसील से घिरा हुआ है।
इतिहास- सन् 1772 में दिल्ली के बादशाह शाहआलम ने नजबकुलीखाँ को राजस्थान की शक्तियों को कुचलने भेजा था तब सीकर के राव देवीसिंह तथा सिरोही सहित समस्त शेखावत सरदारों ने इसी स्थान पर नजबकुलीखाँ को बुरी तरह हराया था।
यह गांव शेखावतों द्वारा बसाया गया था, इसलिए इसे शेखावतों का गांव भी कहा जाता है। झुन्झुनूं के शार्दूलसिंह शेखावत के ज्येष्ठ पुत्र जोरावरसिंह ने सिरोही के दुर्ग का निर्माण करवाया तथा इसके महलों की नींव रखीं।
दुर्ग स्थापत्य- सिरोही का दुर्ग एक छोटी पहाड़ी पर स्थित है। यह दुर्ग आपातकालीन परिस्थितियों के अनुसार सुदृढ़ प्रतीत होता है, क्योंकि इसके चारों तरफ केवल 2 फीट चौड़ाई की दीवारें ही बनी हुई है। इन दीवारों को आसानी से देखकर अनुमान लगाया जा सकता है कि यह दुर्ग आवास के लिए निर्मित नहीं किया गया था।
सिरोही दुर्ग की तलछन्द योजना- दुर्ग पर जाने के लिए किसी प्रकार का रास्ता या सीढ़ियां नहीं बनी हुई है। पत्थरों पर चढ़कर दुर्गम रास्ते से ही दुर्ग पर जाया जा सकता है। दुर्ग के द्वार के सामने भी बड़ी-बड़ी चट्टानें स्थित है तथा दोनों तरफ चबूतरें बने हुए है।
दुर्ग का प्रवेश द्वार दक्षिण दिशा की ओर खुलता है। यह दुर्ग वर्गाकार आकृति का है, इसमें चारों कोनों पर चार बुर्जों का निर्माण किया गया है। इन बुर्जों की ऊँचाई लगभग पांच फीट व चौड़ाई दो फीट है। मुख्य द्वार में प्रवेश करते ही आगे वाली दोनों बुर्जों के नीचे सैनिकों के रहने के कक्ष बने हुए हैं।
दुर्ग की दीवारों में जगह-जगह बड़े-बड़े छिद्र बनाये गये हैं जिनका प्रयोग सम्भवतः युद्ध के समय शत्रु सेना पर वार करने के लिए किया जाता था। इन छिद्रों से बाहरी सेना को आसानी से देख सकते थे ओर उन पर वार कर सकते थे, लेकिन बाहरी सेना इन्हें नहीं देख पाती थी।
दुर्ग के प्रांगण में एक बड़ा हॉल बना हुआ है तथा इसके चारों तरफ दो फीट की चौड़ी दीवार बनी हुई है। पश्च् भाग वाली दोनों बुर्जों के नीचे भी कक्ष बनाये गये हैं, इन कक्षों का निर्माण भी आवास के लिए ही किया गया था। दुर्ग के प्रांगण में बाँयी 104 तरफ सीढ़ियां बनाई गई है जिससे दुर्ग के सामने वाले भाग पर तथा दाँयी तरफ वाली सीढ़ियों से दुर्ग के पश्च् भाग में जाया जा सकता है।
दुर्ग के प्रांगण में उभरी हुई बड़ी-बड़ी चट्टानें है। सिरोही दुर्ग में हमें किसी भी प्रकार के चित्र, झरोखें व अलंकरण देखने को नहीं मिलते हैं। इस दुर्ग के पिछले या अंतिम भाग में लगभग बीस फीट अर्द्धचन्द्राकार एक बड़े कक्ष का निर्माण किया गया है। सम्भवतः इस बड़े कक्ष का निर्मा ण आवास के लिए किया गया होगा। इसको देखकर अनुमान लगाया जा सकता है कि इसका निर्माण बाद के वर्षो में किया गया है। इसकी छत का निर्मा ण पत्थरों से किया गया है, लेकिन वर्तमान में दुर्ग की तरह यह बड़ा कक्ष भी टूट चुका है।
लेखक- नीमकाथाना न्यूज़ टीम
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इतिहास- सन् 1772 में दिल्ली के बादशाह शाहआलम ने नजबकुलीखाँ को राजस्थान की शक्तियों को कुचलने भेजा था तब सीकर के राव देवीसिंह तथा सिरोही सहित समस्त शेखावत सरदारों ने इसी स्थान पर नजबकुलीखाँ को बुरी तरह हराया था।
यह गांव शेखावतों द्वारा बसाया गया था, इसलिए इसे शेखावतों का गांव भी कहा जाता है। झुन्झुनूं के शार्दूलसिंह शेखावत के ज्येष्ठ पुत्र जोरावरसिंह ने सिरोही के दुर्ग का निर्माण करवाया तथा इसके महलों की नींव रखीं।
दुर्ग स्थापत्य- सिरोही का दुर्ग एक छोटी पहाड़ी पर स्थित है। यह दुर्ग आपातकालीन परिस्थितियों के अनुसार सुदृढ़ प्रतीत होता है, क्योंकि इसके चारों तरफ केवल 2 फीट चौड़ाई की दीवारें ही बनी हुई है। इन दीवारों को आसानी से देखकर अनुमान लगाया जा सकता है कि यह दुर्ग आवास के लिए निर्मित नहीं किया गया था।
सिरोही दुर्ग की तलछन्द योजना- दुर्ग पर जाने के लिए किसी प्रकार का रास्ता या सीढ़ियां नहीं बनी हुई है। पत्थरों पर चढ़कर दुर्गम रास्ते से ही दुर्ग पर जाया जा सकता है। दुर्ग के द्वार के सामने भी बड़ी-बड़ी चट्टानें स्थित है तथा दोनों तरफ चबूतरें बने हुए है।
दुर्ग का प्रवेश द्वार दक्षिण दिशा की ओर खुलता है। यह दुर्ग वर्गाकार आकृति का है, इसमें चारों कोनों पर चार बुर्जों का निर्माण किया गया है। इन बुर्जों की ऊँचाई लगभग पांच फीट व चौड़ाई दो फीट है। मुख्य द्वार में प्रवेश करते ही आगे वाली दोनों बुर्जों के नीचे सैनिकों के रहने के कक्ष बने हुए हैं।
दुर्ग की दीवारों में जगह-जगह बड़े-बड़े छिद्र बनाये गये हैं जिनका प्रयोग सम्भवतः युद्ध के समय शत्रु सेना पर वार करने के लिए किया जाता था। इन छिद्रों से बाहरी सेना को आसानी से देख सकते थे ओर उन पर वार कर सकते थे, लेकिन बाहरी सेना इन्हें नहीं देख पाती थी।
दुर्ग के प्रांगण में एक बड़ा हॉल बना हुआ है तथा इसके चारों तरफ दो फीट की चौड़ी दीवार बनी हुई है। पश्च् भाग वाली दोनों बुर्जों के नीचे भी कक्ष बनाये गये हैं, इन कक्षों का निर्माण भी आवास के लिए ही किया गया था। दुर्ग के प्रांगण में बाँयी 104 तरफ सीढ़ियां बनाई गई है जिससे दुर्ग के सामने वाले भाग पर तथा दाँयी तरफ वाली सीढ़ियों से दुर्ग के पश्च् भाग में जाया जा सकता है।
दुर्ग के प्रांगण में उभरी हुई बड़ी-बड़ी चट्टानें है। सिरोही दुर्ग में हमें किसी भी प्रकार के चित्र, झरोखें व अलंकरण देखने को नहीं मिलते हैं। इस दुर्ग के पिछले या अंतिम भाग में लगभग बीस फीट अर्द्धचन्द्राकार एक बड़े कक्ष का निर्माण किया गया है। सम्भवतः इस बड़े कक्ष का निर्मा ण आवास के लिए किया गया होगा। इसको देखकर अनुमान लगाया जा सकता है कि इसका निर्माण बाद के वर्षो में किया गया है। इसकी छत का निर्मा ण पत्थरों से किया गया है, लेकिन वर्तमान में दुर्ग की तरह यह बड़ा कक्ष भी टूट चुका है।
लेखक- नीमकाथाना न्यूज़ टीम
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