गणेश्वर @ (ताम्र सभ्यताओं की जननी) राजस्थान के जिला सीकर के अंतर्गत नीमकाथाना तहसील में ताम्रयुगीन सभ्यता का एक महत्त्वपूर्ण स्थल है। गांवडी नामक गांव गणेश्वर के पास होने की वजह से गणेश्वर को "गांवडी गणेश्वर" (Ganwari Ganeshwar) भी कहा जाता है। सीकर जिले के नीमकाथाना कस्बे से लगभग 10 किलोमीटर दूर अरावली पर्वत श्रंखला की सुरम्य वादियों के बीच बसे इस गांव के भवन निर्माण को देखते ही आभास हो जाता है कि यह एक प्राचीन गांव है।
यहाँ से पुरातत्व विभाग को जो प्रचुर मात्रा में ताम्र सामग्री पायी गयी है, वह भारतीय पुरातत्त्व को राजस्थान की अपूर्व देन है। ताम्रयुगीन सांस्कृतिक केन्द्रों में से यह स्थल प्राचीनतम स्थल है।
उत्खनन से कई सहस्त्र ताम्र आयुध एवं ताम्र उपकरण प्राप्त
खेतड़ी में ताम्र भण्डार के मध्य में स्थित होने के कारण गणेश्वर का महत्त्व स्वतः ही उजागर हो जाता है। यहाँ पर किये गए उत्खनन से कई सहस्त्र ताम्र आयुध एवं ताम्र उपकरण प्राप्त हुए हैं। कांटली नदी के उद्गगम पर स्थित गणेश्वर टीले से ताम्रयुगीन संस्कृति के अवशेष प्राप्त हुए हैं।
ताम्रयुगीन सभ्यताओं में गणेश्वर की सभ्यता सबसे प्राचीन हैं। गणेश्वर से प्राप्त सामग्री में मछली पकड़ने के काँटे, कुल्हाड़ी, भाले, बाण, सुइयाँ, चूड़ियाँ एवं विविध ताम्र आभूषण प्रमुख हैं। ताम्र आयुधों के साथ लघु पाषाण उपकरण भी मिले हैं, जिनसे विदित होता है कि उस समय यहाँ का जीवन भोजन संग्राही अवस्था में था। यहाँ पर पाई गई सामग्रियों में 99 प्रतिशत ताँबा है।
मकान निर्माण की सामग्री में प्रमुखतया पत्थरो का उपयोग
यहाँ के मकान पत्थर के बनाये जाते थे। पूरी बस्ती को बाढ़ से बचाने के लिए कई बार वृहताकार पत्थर के बाँध भी बनाये गये थे। कांदली उपत्यका में लगभग 300 ऐसे केन्द्रों की खोज की जा चुकी हैं, जहाँ गणेश्वर संस्कृति पुष्पित-पल्लवित हुई थी।
गणेश्वर की 1978-1988 में खुदाई
गणेश्वर सभ्यता की खोज सर्वप्रथम रतनचंद्र अग्रवाल ने 1977 में की। बाद में इसकी खुदाई का कार्य राजस्थान राज्य पुरातत्व एवं संग्रहालय विभाग के भूतपूर्व निदेशक श्री आर. सी. अग्रवाल एवं विजय कुमार के नेतृत्व में सन 1978 से 1988 के मध्य हुआ।
यहाँ पर लाल रंग के मृदभांड मिले हैं जिन पर काले चित्रांकन हैं। रेडियो कार्बन विधि से इस स्थल की तिथि 2800 वर्ष ईस्वी पूर्व निर्धारित की गई है। जोधपुर से भी इस तरह की सामग्री मिली है। यह भी मान्यता है कि सीकर की साबी नदी किसी समय पूर्वोत्तरगामी होकर यमुना में जा मिलती थी तथा काटली नदी भादरा के पास दृषद्वती से मिल जाती थी।
यहाँ से करीब एक हजार ताम्बे की वस्तुएं मिली हैं। इनमें मछली मारने के कांटे, बाणों के फलक, छेनियाँ, छड़ें एवं भालों के अग्र भाग मिले हैं। इससे सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि यहाँ के निवासीआखेट की स्थिति में थे। सिन्धु सभ्यता के ताम्बे की पूर्ती यहीं से होती थी। बागौर, कालीबंगा और गांवडी गणेश्वर की सभ्यताएं समकालीन थी।
गणेश्वर एक दृष्टी में...
➧ यहाँ से लगभग 2800 ई. पू. के अवशेष प्राप्त हुऐ है।
➧ यहाँ से पाषाण कालीन सभ्यता के अवशेष प्राप्त हुए है।
➧ यहाँ से मिट्टी का कलश , प्याले , हांड़ी, आदि बर्तन प्राप्त हुये है।
➧ इस सभ्यता का विस्तार सीकर, झुंझुनूं ,जयपुर व भरतपुर तक था।
➧ यहाँ से कपिसवर्णि (मटमैला रंग) मृदभांड प्राप्त हुये है , जो छल्लेदार है।
➧ यहाँ तांबा निकाला जाता था, तथा शुध्द व् औजार बनाने के लिए बैराठ जाता था।
➧ यहाँ से प्राप्त अधिकांश उपकरण ताम्बे से निर्मित थे। तथा तांबा अन्य स्थानों पर भी भेजा जाता था।
➧ यहाँ से ताम्र निर्मित कुल्हाड़ी मिली है। शुद्ध तांबे निर्मित तीर, भाले, तलवार, बर्तन, सुईयां, आभुषण मिले हैं।
➧ यहाँ से मछली पकड़ने के कांटे प्राप्त हुये है जिससे ये विदित होता है कि यह लोग मांसाहारी थे तथा मछली खाने के शौकीन थे।
➧ मकान ईंटो के ना होकर, पत्थरों से निर्मित थे, तथा सुरक्षा के लिए नगर के चारों ओर पत्थरों का परकोटा व पत्थरों का बांध बना हुआ था।
गालव कुंड से बहता है गर्म पानी...
नीमकाथाना के पास गणेश्वर ही एक ऐसी जगह है। जहां कड़ाके की सर्दी में गरम पानी का झरना बहता है। गणेश्वर नीमकाथाना कस्बे से 15 किमी दूर है। तापमान कितना ही गिर जाए, इस झरने के पानी का तापमान औसत 35 डिग्री के आसपास रहता है। कंपकंपाती सर्दी में लोगों को यह खूब रास आता है। देशभर से धार्मिक पर्यटक यहां आते हैं।
धार्मिक नगरी गणेश्वर...
गणेश्वर धाम में सभी देवताओं के अलग-अलग मंदिर बने है। धाम के सामने एक द्वार बना है, द्वार से प्रवेश करते ही चारों और छोटे-बड़े विभिन्न देवी-देवताओं के मंदिर नजर आते है। यहाँ पर भगवान शिव का प्राचीन मन्दिर तथा उसके आस-पास चौबीस अन्य मंदिर, थानेश्वर महाराज का मंदिर तथा संत राव रासलजी का मंदिर दर्शनीय है।
गणेश्वर कुंड में पहाड़ियों से निर्बाध पानी आता रहता है जिसमें सल्फर की मात्रा है यही वजह है कि यहाँ आने वाला हर श्रद्धालु इस कुण्ड में चर्म रोग के निदान हेतु डुबकी लगाना नहीं भूलता। चर्म रोगी भी यहाँ अपने रोग का निदान करने हेतु नहाने आते है।
कई बार उठी तीर्थ स्थल को संरक्षण देने की मांग
गणेश्वर को सरकारी संरक्षण देकर विकास के लिए ग्रामीणों ने कई बार मांग उठाई है। देवस्थान विभाग से भी ग्रामीणों ने गणेश्वर संरक्षित कर विकास की मांग रखी। पीडब्ल्यूडी ने कुंड व गर्म जल स्त्रोत के विकास के लिए बजट जारी किया था, जो कम था। इसके अलावा रायसल सेवा समिति व ग्रामीणों के सहयोग से साफ-सफाई की व्यवस्था हो पाती है। सुविधा मिले तो गणेश्वर में देशी व विदेशी पर्यटकों की संख्या बढ़ सकती है।
Video -
विदेशी पर्यटक रूकते हैं बालेश्वर में
गणेश्वर में विदेशी पर्यटक भी पहुंचते हैं, लेकिन वहां कोई प्रबंध नहीं होने से इनकी संख्या लगातार कम होने लगी है। गणेश्वर आने वाले विदेशी पर्यटक गणेश्वर में रूकने के बजाय बालेश्वर में रुकते हैं। यहां से नीमकाथाना के सभी प्राचीन धार्मिक स्थलों पर विदेशी पर्यटकों को ट्रेवल एजेंसी के लोग लाते हैं।
लेखक- नीमकाथाना न्यूज़ टीम
आप भी अपनी कृति नीमकाथाना न्यूज़.इन के ब्लॉग पर लिखना चाहते हैं तो अभी व्हाट्सअप करें- +91-9079171692 या मेल करें sachinkharwas@gmail.com
Note- यह सर्वाधिकार सुरक्षित (कॉपीराइट) पाठ्य सामग्री है। बिना लिखित आज्ञा के इसकी हूबहू नक़ल करने पर कॉपीराइट एक्ट के तहत कानूनी कार्यवाही हो सकती है।
यहाँ से पुरातत्व विभाग को जो प्रचुर मात्रा में ताम्र सामग्री पायी गयी है, वह भारतीय पुरातत्त्व को राजस्थान की अपूर्व देन है। ताम्रयुगीन सांस्कृतिक केन्द्रों में से यह स्थल प्राचीनतम स्थल है।
उत्खनन से कई सहस्त्र ताम्र आयुध एवं ताम्र उपकरण प्राप्त
खेतड़ी में ताम्र भण्डार के मध्य में स्थित होने के कारण गणेश्वर का महत्त्व स्वतः ही उजागर हो जाता है। यहाँ पर किये गए उत्खनन से कई सहस्त्र ताम्र आयुध एवं ताम्र उपकरण प्राप्त हुए हैं। कांटली नदी के उद्गगम पर स्थित गणेश्वर टीले से ताम्रयुगीन संस्कृति के अवशेष प्राप्त हुए हैं।
ताम्रयुगीन सभ्यताओं में गणेश्वर की सभ्यता सबसे प्राचीन हैं। गणेश्वर से प्राप्त सामग्री में मछली पकड़ने के काँटे, कुल्हाड़ी, भाले, बाण, सुइयाँ, चूड़ियाँ एवं विविध ताम्र आभूषण प्रमुख हैं। ताम्र आयुधों के साथ लघु पाषाण उपकरण भी मिले हैं, जिनसे विदित होता है कि उस समय यहाँ का जीवन भोजन संग्राही अवस्था में था। यहाँ पर पाई गई सामग्रियों में 99 प्रतिशत ताँबा है।
मकान निर्माण की सामग्री में प्रमुखतया पत्थरो का उपयोग
यहाँ के मकान पत्थर के बनाये जाते थे। पूरी बस्ती को बाढ़ से बचाने के लिए कई बार वृहताकार पत्थर के बाँध भी बनाये गये थे। कांदली उपत्यका में लगभग 300 ऐसे केन्द्रों की खोज की जा चुकी हैं, जहाँ गणेश्वर संस्कृति पुष्पित-पल्लवित हुई थी।
गणेश्वर की 1978-1988 में खुदाई
गणेश्वर सभ्यता की खोज सर्वप्रथम रतनचंद्र अग्रवाल ने 1977 में की। बाद में इसकी खुदाई का कार्य राजस्थान राज्य पुरातत्व एवं संग्रहालय विभाग के भूतपूर्व निदेशक श्री आर. सी. अग्रवाल एवं विजय कुमार के नेतृत्व में सन 1978 से 1988 के मध्य हुआ।
यहाँ पर लाल रंग के मृदभांड मिले हैं जिन पर काले चित्रांकन हैं। रेडियो कार्बन विधि से इस स्थल की तिथि 2800 वर्ष ईस्वी पूर्व निर्धारित की गई है। जोधपुर से भी इस तरह की सामग्री मिली है। यह भी मान्यता है कि सीकर की साबी नदी किसी समय पूर्वोत्तरगामी होकर यमुना में जा मिलती थी तथा काटली नदी भादरा के पास दृषद्वती से मिल जाती थी।
यहाँ से करीब एक हजार ताम्बे की वस्तुएं मिली हैं। इनमें मछली मारने के कांटे, बाणों के फलक, छेनियाँ, छड़ें एवं भालों के अग्र भाग मिले हैं। इससे सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि यहाँ के निवासीआखेट की स्थिति में थे। सिन्धु सभ्यता के ताम्बे की पूर्ती यहीं से होती थी। बागौर, कालीबंगा और गांवडी गणेश्वर की सभ्यताएं समकालीन थी।
गणेश्वर एक दृष्टी में...
- गणेश्वर तीर्थ नगरी
- निर्देशांक : 27.6648° N, 75.8200° E
- देश: भारत
- राज्य: राजस्थान
- जिला: सीकर
- मासत ऊँचाई: 480 m
- जनसंख्या (2011) कुल: 5271
- आधिकारिक भाषा: हिन्दी
- समय मण्डल: भारतीय मानक समय (यूटीसी +५:३०)
- पिन: 332705
- दूरभाष कोड: 01574
- वाहन पंजीकरण: RJ 23
- नदी - कांतली नदी के किनारे
- काल - ताम्रपाषाण काल (ताम्रपाषाण युगीन सभ्यता की जननी)
- खोज कर्ता /उत्खनन कर्ता - 1977 आर. सी.(रत्न चन्द्र) अग्रवाल
- ताम्र सभ्यताओं की जननी
- ताम्र संचयी सभ्यता
- पुरातत्व का पुष्कर
➧ यहाँ से लगभग 2800 ई. पू. के अवशेष प्राप्त हुऐ है।
➧ यहाँ से पाषाण कालीन सभ्यता के अवशेष प्राप्त हुए है।
➧ यहाँ से मिट्टी का कलश , प्याले , हांड़ी, आदि बर्तन प्राप्त हुये है।
➧ इस सभ्यता का विस्तार सीकर, झुंझुनूं ,जयपुर व भरतपुर तक था।
➧ यहाँ से कपिसवर्णि (मटमैला रंग) मृदभांड प्राप्त हुये है , जो छल्लेदार है।
➧ यहाँ तांबा निकाला जाता था, तथा शुध्द व् औजार बनाने के लिए बैराठ जाता था।
➧ यहाँ से प्राप्त अधिकांश उपकरण ताम्बे से निर्मित थे। तथा तांबा अन्य स्थानों पर भी भेजा जाता था।
➧ यहाँ से ताम्र निर्मित कुल्हाड़ी मिली है। शुद्ध तांबे निर्मित तीर, भाले, तलवार, बर्तन, सुईयां, आभुषण मिले हैं।
➧ यहाँ से मछली पकड़ने के कांटे प्राप्त हुये है जिससे ये विदित होता है कि यह लोग मांसाहारी थे तथा मछली खाने के शौकीन थे।
➧ मकान ईंटो के ना होकर, पत्थरों से निर्मित थे, तथा सुरक्षा के लिए नगर के चारों ओर पत्थरों का परकोटा व पत्थरों का बांध बना हुआ था।
गालव कुंड से बहता है गर्म पानी...
नीमकाथाना के पास गणेश्वर ही एक ऐसी जगह है। जहां कड़ाके की सर्दी में गरम पानी का झरना बहता है। गणेश्वर नीमकाथाना कस्बे से 15 किमी दूर है। तापमान कितना ही गिर जाए, इस झरने के पानी का तापमान औसत 35 डिग्री के आसपास रहता है। कंपकंपाती सर्दी में लोगों को यह खूब रास आता है। देशभर से धार्मिक पर्यटक यहां आते हैं।
धार्मिक नगरी गणेश्वर...
गणेश्वर धाम में सभी देवताओं के अलग-अलग मंदिर बने है। धाम के सामने एक द्वार बना है, द्वार से प्रवेश करते ही चारों और छोटे-बड़े विभिन्न देवी-देवताओं के मंदिर नजर आते है। यहाँ पर भगवान शिव का प्राचीन मन्दिर तथा उसके आस-पास चौबीस अन्य मंदिर, थानेश्वर महाराज का मंदिर तथा संत राव रासलजी का मंदिर दर्शनीय है।
गणेश्वर कुंड में पहाड़ियों से निर्बाध पानी आता रहता है जिसमें सल्फर की मात्रा है यही वजह है कि यहाँ आने वाला हर श्रद्धालु इस कुण्ड में चर्म रोग के निदान हेतु डुबकी लगाना नहीं भूलता। चर्म रोगी भी यहाँ अपने रोग का निदान करने हेतु नहाने आते है।
कई बार उठी तीर्थ स्थल को संरक्षण देने की मांग
गणेश्वर को सरकारी संरक्षण देकर विकास के लिए ग्रामीणों ने कई बार मांग उठाई है। देवस्थान विभाग से भी ग्रामीणों ने गणेश्वर संरक्षित कर विकास की मांग रखी। पीडब्ल्यूडी ने कुंड व गर्म जल स्त्रोत के विकास के लिए बजट जारी किया था, जो कम था। इसके अलावा रायसल सेवा समिति व ग्रामीणों के सहयोग से साफ-सफाई की व्यवस्था हो पाती है। सुविधा मिले तो गणेश्वर में देशी व विदेशी पर्यटकों की संख्या बढ़ सकती है।
Video -
विदेशी पर्यटक रूकते हैं बालेश्वर में
गणेश्वर में विदेशी पर्यटक भी पहुंचते हैं, लेकिन वहां कोई प्रबंध नहीं होने से इनकी संख्या लगातार कम होने लगी है। गणेश्वर आने वाले विदेशी पर्यटक गणेश्वर में रूकने के बजाय बालेश्वर में रुकते हैं। यहां से नीमकाथाना के सभी प्राचीन धार्मिक स्थलों पर विदेशी पर्यटकों को ट्रेवल एजेंसी के लोग लाते हैं।
स्पेशल थैंक्स-
उमेश शर्मा
आप भी अपनी कृति नीमकाथाना न्यूज़.इन के ब्लॉग पर लिखना चाहते हैं तो अभी व्हाट्सअप करें- +91-9079171692 या मेल करें sachinkharwas@gmail.com
0 Comments