बाबा: एक अविस्मरणीय शिक्षक

पं.रामेश्वरदयाल भारतीय सेना के सेवानिवृत्त कप्तान थे। अपनी सैन्य सेवाओं के दौरान वे परिश्रमी, समय के पाबंद और कर्तव्यनिष्ठ रहे थे। वे इतने ईमानदार थे 
कि दुनिया की सारी दौलत भी उनकी ईमानदारी को हिला नहीं सकती थी। वे कहते थे, "ईमानदारी एक अच्छी आदत है, नीति नहीं।" 

बाबा कभी भी असत्य नहीं बोलते थे। वे जुबान के धनी थे और धर्म में उनका अटूट विश्वास था। उन्हें शास्त्रों और उनके सिद्धांतों में गहरी आस्था थी। उन्होंने "कर्म के सिद्धांत" का पालन किया था।  वे अक्सर कहा करते थे, “यह हमारी कर्मभूमि है। हम सब यहां अपने कर्म करने आए हैं। हमारे वर्तमान कर्म ही हमारे भविष्य के निर्धारक होते हैं। इसलिए हमेशा अच्छे कर्म करने चाहिए।  कर्मों का फल इसी जन्म में या अगले जन्म में अवश्य भोगना पड़ता है"।

सैन्यसेवाओं से सेवानिवृत्ति के बाद, बाबा गाँव आ गए। गाँव में उनकी बहुत प्रतिष्ठा थी। उन्होंने लोगों को शराब और धूम्रपान के दुष्परिणामों के बारे में भी जागरूक किया।  उनकी प्रेरणा से कई लोगों ने हमेशा के लिए नशे का त्याग कर दिया था।

बाबा बहुत विद्वान व  प्रभावशाली व्यक्ति थे परन्तु उनमें जरा भी अभिमान नहीं था। वह एक सख्त अनुशासक थे और उच्च नैतिक चरित्र रखते थे। हमारे गाँव में शैक्षिक क्रांति के अग्रदूत के रूप में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उन्हें यह जानकर दुख हुआ कि अंग्रेजी में फेल होने के कारण काफी विद्यार्थी पढ़ाई छोड़ देते थे। 

तत्पश्चात,बाबा ने विद्यार्थियों को फ्री अंग्रेजी पढ़ाना आरम्भ किया और उन्हें अंग्रेजी सीखने के लिए प्रेरित किया। परिणामतः  कई छात्र उनके पास पढ़ने के लिए आने लगे थे।

चूंकि बाबा अंग्रेजी में सभी छात्रों की नींव मजबूत करना चाहते थे,इसलिए वे   प्रत्येक बिंदु को अच्छी तरह से समझाया करते थे। परन्तु अधिकांश छात्र इसमे पर्याप्त रूचि नहीं लेते थे; वे केवल परीक्षा पास करने लायक ही अंग्रेजी सीखना चाहते थे। बाबा अंग्रेजी लिखावट सुधारने में भी मदद करते थे। उनकी खुद की लिखावट भी श्रेष्ठ थी।

हालाँकि बाबा का पेशा कभी भी शिक्षण का नहीं रहा था, फिर भी उनमें इसके प्रति गहरी लगन थी। एक आदर्श शिक्षक के सभी गुण उनमें मौजूद थे।...


बाबा ने मुझे भी अंग्रेजी सीखने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने मुझे समझाया कि भविष्य में ये बहुत उपयोगी साबित होगी। वे मुझे रोजाना अलग-अलग पैटर्न के  वाक्यों का हिंदी से अंग्रेजी में अनुवाद समझाया करते थे। उसके बाद, मैं खुद उन पैटर्नों का उपयोग करके सैकड़ों वाक्य बनाता था और अगले दिन उनसे जाँच करवाता था। उन्होंने अनुवाद कला व शब्दावली का  मुझे बहुत अभ्यास करवाया था।

किताबों के अलावा, बाबा हमें ईमानदारी, परोपकार और व्यक्तिगत स्वच्छता का भी पाठ पढ़ाते थे। वे खुद भी सदैव स्वच्छ श्वेत वस्त्र पहनते थे और पूर्णतः सादा जीवन जीते थे। वे फैशन के विरुद्ध थे। वे पशु पक्षियों की सेवा का भी ध्यान रखते थे।


एक दिन मैंने बाबा से पूछा कि उन्हें अंग्रेजी भाषा में  महारत कैसे हासिल की, तो उन्होंने बताया कि वे गांव के पहले व्यक्ति हैं जो मैट्रिक की पढ़ाई के लिए सुदूर हाई स्कूल में गये थे। वहां वे इंटरपरीक्षा में अंग्रेजी में चार अंकों से फेल हो गए थे। इस कारण उन्हें  आगे की पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी।... तत्पश्चात उन्होंने ठान लिया कि वे अंग्रेजी भाषा में कमजोरी को दूर करेंगे और जब भी संभव होगा उच्च अध्ययन अवश्य करेंगे।
सेना में शामिल होने के बाद,उन्होंने अपनी पढ़ाई पुनः शुरू की और सतत अभ्यास से अंग्रेजी भाषा में दक्षता हासिल की।  इतना ही नहीं, इसके बाद उन्होंने स्नातक और एलएलबी की पढ़ाई भी अंग्रेजी माध्यम में  ही की। उस दौर में इतनी शिक्षा अर्जित करना बहुत मायने रखता था।...
इस तरह उन्होंने यह साबित किया कि दुनिया में कुछ भी असंभव नहीं है।सतत अभ्यास से कोई भी लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है….

बाबा पेशे से नहीं; जुनून से शिक्षक थे।

वे मेरी सफलता के  प्रेरक थे। उनसे मिलना मेरे जीवन में एक टर्निंग पॉइंट साबित हुआ। उनकी शिक्षाएं आज भी मेरे कानों में गूंजती हैं।...  दया,सहानुभूति, सहयोग,परोपकार व राष्ट्रभक्ति जैसे उच्च मानवीय मूल्य बाबा में कूट कूट कर भरे हुए थे। उनके जैसे श्रेष्ठ मानवीय मूल्यों वाले लोग इस युग में विरले ही मिलते हैं।

चौरासी वर्षीय बाबा वर्तमान में दिल्ली में रहते हैं। इस शिक्षक दिवस पर मैं उनके प्रति अपनी गहन कृतज्ञता व्यक्त करता हूं और उनके स्वस्थ, सुखी व दीर्घ जीवन के लिए ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ।

समीक्षा

प्रस्तुत लेख अतीत की स्मृतियों व भावनाओं के जटिल धागे में पिरोया हुआ एक संस्मरण लेख है जिसमें लेखक ने संयम,सदाचार व अच्छाई के प्रतीक अपने गुरु की उदारता पर प्रकाश डालते हुए उनका सुंदर चरित्र चित्रण किया है। उनके गुरु(बाबा) का शिक्षण के प्रति लगाव व उदारता सराहनीय व अनुकरणीय है। बाबा का लेखक के लिए असीम प्रेम व लेखक का उनके लिए कृतज्ञता-भाव भी उल्लेखनीय हैं।

 .....सम्पादक मण्डल

 ( अंग्रेजी संस्मरण  "द पोर्ट्रेट ऑफ ए जेंटलमैन" से उद्धरित अंश)

लेखक: डॉ. रवींद्र शर्मा, हुड़ियाकलां(नीमराना)